MADHUBANI / EDUCATION NEWS :
खबर दस्तक
मधुबनी / लदनियां :
एक तरफ जहां स्कूलों को सरकार करोड़ों रुपए व्यय कर भवन व अन्य साधनों से सम्पन्न करना चाहती है, वहीं दूसरी ओर कई ऐसे विद्यालय भवन है, जहां हल्की सी मरम्मति की प्रतीक्षा में जानलेवा बना हुआ है।
बच्चे दहशत के माहौल में इस क्षतिग्रस्त भवन में बैठ कर अपनी पढ़ाई पूरी करने को मजबूर हैं। ऐसा ही एक स्कूल लदनियां प्रखंड के कुमरखत पूर्वी पंचायत के पथलगाढ़ा, महुलिया व विसहरिया गांव में है। उक्त विधालयों में पुराने भवन की स्थिति काफी जर्जर है। कब किस ओर से छत में दीवार का प्लास्टर गिर कर बच्चे एवं शिक्षकों को चोटिल कर दे, कहना मुश्किल है। पथलगाढ़ा गांव स्थित विद्यालय को उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय के साथ साथ 12वीं की पढ़ाई भी आरंभ हो गई है। प्रथम चरण में मध्य विद्यालय पथलगाढ़ा में दशमी की पढ़ाई शुरू हुई। सरकार ने दो कमरे का भवन निर्माण किया, दशमी और नौवीं के छात्रों को एक साथ बैठाकर पढ़ाई कराने की समस्या के साथ-साथ विषय वार शिक्षकों का नहीं होना भी एक समस्या था। इधर सरकार के द्वारा विद्यालय भवन निर्माण कार्य का ही उसे 12वीं तक पढ़ाई के लिए उत्क्रमित कर दिया। ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा संचालन के लिए भवन नहीं है।
विद्यालय में पुस्तकालय, प्रयोगशाला, काॅमन रुम एवं शिक्षक शिक्षिकाओं की व्यवस्था नहीं है, ऐसे में यहां के छात्र छात्राएं नामांकन के बाद विद्यालय के बुलावे पर ही विद्यालय में कदम रखते हैं। सरकार के द्वारा शिक्षा की ऐसी अजीबो-गरीब व्यवस्था का दंश झेल रहे छात्रों का शिक्षा मरणासन्न हालात से कम नहीं है। विद्यालय प्रधानाध्यापक का कहना है कि वैसे तो इस व्यवस्था को सरकार खुद जानती है और इसके लिए जिम्मेवार भी। फिर भी मरम्मति एवं छात्रों के अनुपात में भवन निर्माण की मांग को लेकर अधिकारियों से लेकर राजनेताओं से गुहार लगाया जा चुका है। परंतु अब तक स्कूल जीर्णोद्धार के लिए कोई पहल नहीं की गई है। जबकि स्थानीय विधायक मीणा कामत भी इसी पंचायत के निवासी हैं, जहां यह एकलौता स्कूल है, जहां 12वीं तक पढ़ाई होती है। सरकार ने जिस उद्देश्य से ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक पंचायत में इस तरह की शिक्षा व्यवस्था का संचालन किया, उस स्तर की व्यवस्था न तो सरकार ने की और नहीं जनप्रतिनिधियों ने सहयोग किया। परंतु उद्देश्य जो भी हो इतना तो सच्चाई है कि सरकार की मौजूदा व्यवस्था से लोग साक्षर मात्र हो रहें हैं, ज्ञानी या शहरी छात्रों के अनुभवों एवं ज्ञान के आगे खड़ा नहीं हो पा रहे हैं।