- मुकेश सहनी की वीआईपी को मिलेगी सीधी टक्कर* !”
खबर दस्तक डेस्क
पटना:
बिहार की सियासी ज़मीन एक बार फिर गर्म हो गई है, और इस बार वजह है एक नई राजनीतिक पार्टी की एंट्री — विकास वंचित इंसान पार्टी (VVIP)। जी हां, शॉर्ट फॉर्म में ‘वीवीआईपी’ नाम से सुर्खियों में आई इस नई पार्टी ने न केवल राज्य की राजनीतिक फिज़ाओं में हलचल मचा दी है, बल्कि सीधे तौर पर मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को चुनौती देने का संकेत भी दे दिया है।
राजनीति में नया मोर्चा, पुराना संघर्ष
‘वीवीआईपी’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप निषाद हैं, जो मूलतः उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं और मल्लाह (निषाद) समाज का प्रभावशाली चेहरा माने जाते हैं। खास बात यह है कि वे एक समय मुकेश सहनी के बेहद करीबी सहयोगी रह चुके हैं, लेकिन वर्ष 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों नेताओं के बीच वैचारिक और राजनीतिक मतभेद उभर आए। नतीजतन, अब वही प्रदीप निषाद बिहार की धरती से एक नए राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत कर चुके हैं।
इस नई पार्टी की लॉन्चिंग को लेकर आज पटना में एक भव्य आयोजन हुआ, जिसमें निषाद समाज के सैकड़ों कार्यकर्ता एवं समर्थक जुटे। प्रदीप निषाद ने मंच से हुंकार भरते हुए कहा —
“अब वह वक्त आ गया है जब समाज के वंचित तबकों की असली लड़ाई लड़ी जाएगी। यह पार्टी किसी व्यक्ति विशेष की महत्वाकांक्षा का साधन नहीं, बल्कि उन करोड़ों लोगों की आवाज़ बनेगी जिन्हें आज भी विकास की मुख्यधारा से दूर रखा गया है।”
क्या होगी वीआईपी बनाम वीवीआईपी की राजनीतिक टक्कर?
यह टक्कर इसलिए भी दिलचस्प हो गई है क्योंकि बिहार में पहले से ही ‘वीआईपी’ यानी विकासशील इंसान पार्टी एक स्थापित नाम है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी ने एनडीए के साथ गठबंधन कर अच्छी पकड़ बनाई थी। हालांकि बाद में उनके महागठबंधन में शामिल होने से सियासी समीकरण बदलते रहे। अब जब ‘वीवीआईपी’ मैदान में उतर चुकी है, तो निषाद/मल्लाह वोट बैंक में बिखराव की पूरी संभावना बन रही है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि वीवीआईपी को समाज का व्यापक समर्थन मिला, तो यह ना केवल वीआईपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है, बल्कि राजद-जदयू और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों की रणनीति भी प्रभावित कर सकता है। खासकर सीमांचल, कोसी, मिथिलांचल और मगध के इलाकों में जहां निषाद समाज का प्रभाव है, वहां यह नया समीकरण निर्णायक साबित हो सकता है।
जातीय समीकरण और सामाजिक संदेश
वीवीआईपी का गठन केवल राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी देता है — कि अब निषाद समाज अपने नेतृत्व को लेकर सजग हो चुका है और वह केवल प्रतीकात्मक भागीदारी नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका चाहता है। प्रदीप निषाद ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी न तो किसी गठबंधन की गोदी में बैठेगी और न ही बिकेगी। “हम अपने दम पर लड़ेंगे और सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करेंगे”, उन्होंने जोशीले स्वर में कहा।
क्या कहते हैं राजनीतिक पंडित?
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रो. आनंद शेखर के मुताबिक, “बिहार की राजनीति में जातीय पहचान और सामाजिक प्रतिनिधित्व बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में अगर वीवीआईपी अपने सामाजिक आधार को साधने में सफल हो जाती है, तो यह पार्टी चुनावी नतीजों में भी असर डालेगी।”
‘वीआईपी’ बनाम ‘वीवीआईपी’
बिहार में चुनाव से पहले नई पार्टियों का आना कोई नई बात नहीं, लेकिन ‘वीवीआईपी’ की एंट्री एक रणनीतिक चुनौती बन सकती है — खासकर उन दलों के लिए जो अब तक निषाद वोट बैंक को अपने पाले में मानकर चलते रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रदीप निषाद की ‘वीवीआईपी’ वाकई ‘वीआईपी’ पर भारी पड़ेगी या बिहार की जनता इसे सिर्फ एक और चुनावी प्रयोग मानकर नजरअंदाज कर देगी?
एक बात तो तय है — बिहार की सियासत में अब ‘वीआईपी’ बनाम ‘वीवीआईपी’ का मुकाबला देखने को मिलेगा, और यह लड़ाई होगी जनाधिकार, पहचान और नेतृत्व की।