- जिले के चिन्हित 37 गांव में चलाया जाएगा अभियान
- 15 जून तक चलेगा कालाजार रोगी खोज अभियान
- कालाजार प्रभावित प्रखंडों में कालाजार मरीजों के घर के 500 मीटर के परिधि में रोगी की होगी खोज
खबर दस्तक
मधुबनी :
मधुबनी जिले में कालाजार मरीजों की खोज के लिए अभियान चलाया जाएगा। अभियान के तहत आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर कालाजार मरीजों की खोज करेंगी। यह अभियान जिले के 17 प्रखंडों के 37 गांव में चलेगा।
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉक्टर डी.एस. सिंह ने बताया विभाग के द्वारा हाउस टू हाउस जाकर कालाजार, पीकेडीएल और एचआईवी वी एल की जांच के लिए माइक्रो प्लान तैयार किया गया है। जिले के 17 प्रखंड में फूल 38000 लोगों की जांच की जाएगी, जिसके लिए 9500 घरों को चिन्हित किया गया है। अभियान में 37 आशा एवं 38 आशा फैसिलिटर, ब्लॉक स्तर के सुपरवाइजर और जिला स्तर के मॉनिटर शामिल होंगे। आशा कार्यकर्ता वर्ष 2022 से अप्रैल 2025 तक रिपोर्ट के आधार पर उनके घरों के चारों ओर 200 से 250 घरों में संभावित मरीजों की पहचान करेगी। मरीजों की खोज कालाजार प्रभावित प्रखंडों में पूर्व में प्रतिवेदित मरीजों के घर के 500 मीटर के परिधि में होगी। क्षेत्र में अभियान की सफलता को लेकर प्रचार-प्रसार किया जाएगा।
हर पीएचसी पर मुफ्त जांच सुविधा उपलब्ध :
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉक्टर डी.एस. सिंह ने बताया हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कालाजार जांच की सुविधा उपलब्ध है। कालाजार की किट (आरके-39) से 10 से 15 मिनट के अंदर टेस्ट हो जाता है। हर सेंटर पर कालाजार के इलाज में विशेष रूप से प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध हैं।
सरकार द्वारा रोगी को मिलती है आर्थिक सहायता :
डॉ. सिंह ने बताया कालाजार से पीड़ित रोगी को मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में पैसे भी दिए जाते हैं। बीमार व्यक्ति को 6600 रुपये राज्य सरकार की ओर से और 500 रुपए केंद्र सरकार की ओर से दिए जाते हैं। यह राशि वीएल (ब्लड रिलेटेड) कालाजार में रोगी को प्रदान की जाती है। वहीं चमड़ी से जुड़े कालाजार (पीकेडीएल) में 4000 रुपये की राशि केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है।
कालाजार के कारण :
भीवीडीएस पुरुषोत्तम कुमार ने बताया कालाजार मादा फाइबोटोमस अर्जेंटिपस(बालू मक्खी) के काटने के कारण होता है, जो कि लीशमैनिया परजीवी का वेक्टर (या ट्रांसमीटर) है। किसी जानवर या मनुष्य को काट कर हटने के बाद भी अगर वह उस जानवर या मानव के खून से युक्त है, तो अगला व्यक्ति जिसे वह काटेगा वह संक्रमित हो जायेगा। इस प्रारंभिक संक्रमण के बाद के महीनों में यह बीमारी और अधिक गंभीर रूप ले सकती है, जिसे आंत में लिशमानियासिस या कालाजार कहा जाता है।