DARBHANGA NEWS :
दरभंगा :
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के पीजी संस्कृत विभाग, वी०एस०जे० कॉलेज, राजनगर तथा एमएलएस कॉलेज, सरिसबपाही, मधुबनी के संयुक्त तत्वावधान में ”संस्कृतशास्त्र एवम् उसके विविध आयाम” विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन जुबली हॉल में किया गया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ० घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित उद्घाटन सत्र में महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो० संजय श्रीवास्तव-मुख्य अतिथि, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो० देवनारायण झा- सारस्वत अतिथि तथा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति प्रो० सिद्धार्थ शंकर सिंह- बीज वक्ता, मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो० मंजू राय- विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। वहीं वी०एस०जे० कॉलेज, राजनगर, मधुबनी के प्रभारी प्रधानाचार्य सह आयोजन सचिव प्रो० जीवानंद झा, एमएलएस कॉलेज, सरिसबपाही के प्रभारी प्रधानाचार्य सह संयोजक डॉ० कृष्णकांत झा तथा संस्कृत- प्राध्यापक सह सेमिनार के समन्वयक डॉ० आरएन चौरसिया, संस्कृत प्राध्यापिका- डॉ० ममता स्नेही एवं डॉ मोना शर्मा, संस्कृत विश्वविद्यालय की व्याकरण- प्राध्यापिका डॉ० साधना शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किया।
जबकि समारोह में प्रो० मुनेश्वर यादव, डॉ० मुकुल बिहारी वर्मा, डॉ० अमरेन्द्र शर्मा, डॉ शशिकांत पांडे, डॉ० उमाकांत पासवान, डॉ० महेश प्रसाद सिंह, डॉ० शिवानंद झा, डॉ० मनोज कुमार, डॉ० विनय कुमार झा, डॉ० उमेश चौधरी, डॉ० कामेश्वर पासवान, डॉ० पवन कुमार, डॉ० अशोक कुमार, डॉ० नन्द किशोर ठाकुर, विजय कुमार चौधरी सहित 250 से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे।
सेमिनार का प्रारम्भ रितु कुमारी, भार्गव भारती एवं कंचन के नेतृत्व में विश्वविद्यालय कुलगीत तथा अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ, जबकि समापन राष्ट्रगान से हुआ। संस्कृत में स्वागत गान प्रियंका कुमारी, माधुरी एवं ज्योति के नेतृत्व में विभाग की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया गया।
- विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग, वी०एस०जे० कॉलेज, राजनगर तथा एमएलएस कॉलेज, सरिसबपाही द्वारा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार प्रारंभ
मौके पर प्रो संजय श्रीवास्तव ने कहा कि मानवीय मूल्य, सनातन धर्म तथा संस्कृति की भाषा संस्कृत की विकसित भारत- 2047 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है। संस्कृत के बिना आयुर्वेद, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष आदि का ज्ञान संभव नहीं है। यह किसी धर्म, जाति, वर्ग या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। आज विभिन्न माध्यमों से संस्कृत सिखाया जा रहा है। उम्मीद है निकट भविष्य में संस्कृत काफी लोकप्रिय भाषा बनेगी।
वहीँ, प्रो देवनारायण झा ने कहा कि विश्व के सभी ज्ञानों का मूल आधार संस्कृत ही है, जिसे आज ज्यादा पढ़ने और जानने की जरूरत है। इसे निरंतर अभ्यास तथा स्वाध्याय से ही प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विद्या की भूमि मिथिला अपने निवासियों के लिए संपूर्ण तीर्थ रही है। हमें अपने जीवन का परम लक्ष्य नहीं भूलना चाहिए। मानव धन से नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से तृप्त होता है।
वहीँ, प्रो सिद्धार्थ शंकर सिंह ने सेमिनार के विषय को समसामयिक एवं उपयोगी बताते हुए कहा कि संस्कृत सदा हमारी पथ- प्रदर्शिका रही है। संस्कृत मंत्रों एवं श्लोक के उच्चारण से हमारी तंत्रिकाओं एवं अंगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। संस्कृत ज्ञान से ही पुनः भारत विश्वगुरु बनेगा।
वहीँ, प्रो० मंजू राय ने कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा एवं ज्ञान- विज्ञान का स्रोत है जो ऋषियों, मुनियों एवं दार्शनिकों की भाषा है। गणित, विज्ञान और आयुर्वेद आदि का मूल स्रोत संस्कृत है जो बताता है कि पूरा विश्व एक परिवार है। यह मानव को सभ्य एवं सम्माननीय भी बनता है।
वहीँ, डॉ० घनश्याम महतो ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सीधा जुड़ा हुआ है। यह हमें कर्तव्य-बोध भी करती है। उन्होंने संस्कृत का भविष्य उज्ज्वल बताते हुए कहा कि अपने बच्चों को इसे जरूर पढ़ाएं।
वहीँ, डॉ० साधना शर्मा के कुशल संचालन में आयोजित उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत एवं प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए प्रो जीवानन्द झा ने कहा कि संस्कृत अत्यंत विस्तृत एवं समृद्ध है, जो कंप्यूटर के लिए भी सर्वाधिक व्यावहारिक भाषा है।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ० कृष्ण कान्त झा ने भी संस्कृत की महत्ता एवं उसके विविध आयामों पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात् पैनल डिस्कशन तथा दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के अंत में प्रो० जीवानन्द झा के नेतृत्व में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया।