MADHUBANI / JAINAGAR / LADANIA NEWS :
मधुबनी / लदनियां (राम कुमार यादव) :
जम्मू कश्मीर के पहलगाम में बीते 22अप्रैल को हुए भयानक आतंकी हमले ने एक बार फिर हमें आतंकवाद की क्रूरता का सामना करने को मजबूर कर दिया है।नेपाल के एक पर्यटक और स्थानीय घोड़ा चालक सहित 26 पर्यटकों की नृशंस हत्या ने दुनिया को स्तब्ध कर दिया है। इस जघन्य अपराध के गुनहगारों को सज़ा दिलाना ज़रूरी है। साथ ही यह भी जरूरी है कि उन तमाम चूकों और लापरवाहियों की जवाबदेही तय की जाए, जिनकी वजह से हमलावरों ने बेधड़क लोगों को मार डाला और बिना रोक-टोक भाग निकले। उक्त विचार बाबूबरही विधानसभा क्षेत्र से राजद के पूर्व विधायक प्रोफेसर उमा कांत यादव ने बुधवार को राजद कार्यालय में आयोजित 3 मई को पटना में आहूत अतिपिछड़ा सम्मेलन, एवं 8 मई को आयोजित होने वाली विधानसभा स्तरीय कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम की तैयारी व समीक्षा बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा।
उन्होंने कहा कि जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर में हर आतंकी हमले के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जवाब मांगते थे। एक वीडियो में नरेंद्र मोदी मनमोहन सिंह से पूछते हैं कि आतंकवादी सीमा पार करके लोगों को कैसे मार सकते हैं, जबकि दिल्ली की सत्ता को देश की सीमाओं, धन के प्रवाह, सूचना और संचार पर पूरा नियंत्रण हासिल है। यह वीडियो पिछले एक दशक से लाखों बार देखा जा चुका है। पहलगाम हमला घाटी में पर्यटकों पर इस पैमाने का पहला हमला है। आज वही सवाल और ज्यादा प्रासंगिक हैं, पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी उनके ही पुराने सवालों का मज़ाक उड़ाती सी लगती है, जो कभी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पूछे थे।
जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका मतलब है कि यहां क़ानून-व्यवस्था की पूरी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है। आतंकवाद से निपटने के लिए बनी केंद्रीय कमान की अगुवाई चुने हुए मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल करते हैं। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले से ठीक दो हफ्ते पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा के लिए राज्य का दौरा किया था, लेकिन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को उस बैठक में शामिल नहीं किया गया। बैठक के बाद अमित शाह ने मीडिया को बताया था कि मोदी सरकार ने कश्मीर को आतंकवाद से मुक्त कर दिया है और राज्य में सामान्य स्थिति बहाल कर दी है। आज, पहलगाम त्रासदी की सीधी ज़िम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को लेनी चाहिए। न सिर्फ जवाबदेही तय होनी चाहिए, बल्कि ज़िम्मेदारों को अपने पद भी छोड़ने चाहिए, मगर जिम्मेदारी से पलटना और जवाब देने से इनकार करना मोदी सरकार की पहचान बन चुका है।
अब खबरें आ रही हैं कि सरकार को इस आतंकी हमले की संभावना के बारे में पहले से ही खुफिया इनपुट मिल चुके थे। इस बात को और बल तब मिलता है जब यह तथ्य सामने आता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 19 अप्रैल को प्रस्तावित जम्मू-कश्मीर यात्रा आख़िरी समय में रद्द कर दी गई थी।
रिपोर्टों के मुताबिक, हमला करने वाले आतंकी कई दिनों से इलाके में मौजूद थे और उन्होंने पूरी तैयारी के साथ अपनी योजना को अंजाम दिया। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि एक ऐसे राज्य में, जहाँ सुरक्षा बलों की भारी तैनाती रहती है, वहाँ लगभग दो हज़ार पर्यटकों को बिल्कुल असुरक्षित हालत में छोड़ दिया गया न पुलिस की मौजूदगी थी, न सेना की, यह एक अक्षम्य चूक है। पीड़ित परिवारों, सुरक्षा विशेषज्ञों और कश्मीर पर नजर रखने वालों ने इस गंभीर खुफिया और सुरक्षा नाकामी की ओर साफ़ इशारा किया है। लेकिन सरकार और मुख्यधारा मीडिया इस पर जानबूझकर चुप्पी साधे हुए हैं ।
प्रमुख मीडिया और संघ-भाजपा की आईटी सेल पहलगाम हमले पर ज़रूरी सवाल उठाने के बजाय, इसका इस्तेमाल कश्मीरियों और पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने में कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर आतंकियों ने पर्यटकों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाया, तो स्थानीय कश्मीरी मुसलमानों ने अपनी जान जोखिम में डालकर यहां तक कि जान कुर्बान करके पर्यटकों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया और घायलों को अस्पताल पहुंचाया।
सुरक्षा बलों के पूरी तरह ग़ायब रहने और डेढ़ घंटे तक कोई सरकारी मदद न मिलने के बीच, स्थानीय लोगों की पहल से कई जानें बचीं और मौत का आंकड़ा और बड़ा होने से टला। कश्मीर के लोगों ने इस आतंकी हमले और पर्यटन को पहुँचे भारी नुकसान के खिलाफ सड़कों पर उतर कर विरोध जताया। पर्यटन, जो कश्मीर की अर्थव्यवस्था और बहुतेरे लोगों की रोज़ी-रोटी का बड़ा सहारा है। पूरे राज्य में स्वतःस्फूर्त बंद देखने को मिला। जहाँ एक ओर एयरलाइंस फंसे हुए पर्यटकों से मनमाने किराए वसूल रही थीं, वहीं कश्मीरी आम लोगों ने अपने घर और दिल खोलकर बाहर से आए लोगों को सहारा दिया। इसके बावजूद, कश्मीरी मुसलमानों को बदनाम किया जा रहा है और संघ ब्रिगेड व गोदी मीडिया के ज़हरीले नफ़रती अभियान का असर पूरे देश में दिख रहा है। कश्मीरी छात्रों, व्यापारियों और मज़दूरों को धमकियाँ मिल रही हैं, और उनके खिलाफ हिंसा बढ़ रही है।
छह साल पहले पुलवामा घटना की तरह, सरकार एक बार फिर लोगों के ग़ुस्से और सदमे को चुनावी फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। प्रधानमंत्री ने सऊदी अरब की यात्रा बीच में छोड़ी और 24 अप्रैल को कानपुर का कार्यक्रम रद्द किया, लेकिन कश्मीर जाने के लिए नहीं, बल्कि बिहार में चुनावी रैली करने के लिए, जहाँ इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। उन्होंने दिल्ली में पहलगाम हमले पर चर्चा के लिए बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में शामिल होना भी ज़रूरी नहीं समझा।
भारत ने सिंधु जल समझौता रोकने, पाकिस्तानी नागरिकों के वीज़ा रद्द करने, उच्चायोग के कर्मचारियों की संख्या घटाने और भारत-पाक सीमा पर अटारी चेकपॉइंट बंद करने जैसे फ़ैसले लिए हैं। पाकिस्तान की ओर से उठाए गए जवाबी कदम दोनों देशों के बीच कानूनी राजनयिक संबंधों और संवाद को और सीमित कर देंगे, पड़ोसियों के बीच तनाव बढ़ाएंगे और आम नागरिकों की जायज़ गतिविधियाँ बाधित होंगी, लेकिन इससे आतंकवाद पर असल में कोई असर नहीं पड़ेगा। असल मक़सद है मोदी सरकार की नाकामियों से ध्यान हटाना, उग्र राष्ट्रवाद का आक्रामक माहौल बनाना और मुस्लिम विरोधी नफ़रत और डर (इस्लामोफोबिया) को बढ़ावा देना। सबसे दुखद बात यह है कि कश्मीर के लोगों के दर्द को लगातार नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, उस कश्मीर के, जिसकी वादी कभी स्वर्ग कहलाती थी, लेकिन जो बरसों से जनसंहार, ग़ायबशुदगियों और गिरफ़्तारियों से पीड़ित रही है। 2019 के बाद वहाँ सैन्यीकरण और दमन और तेज़ हुआ है, लोकतांत्रिक आवाज़ें कुचली गई हैं और संविधान से मिले अधिकार भी छीन लिए गए हैं।
बदले की कार्रवाइयों और पूरे कश्मीर को सामूहिक सज़ा देने के लिए सुनियोजित मुहिम ने देश के कई हिस्सों में कश्मीरी छात्रों और व्यापारियों को गंभीर ख़तरे में डाल दिया है। गुजरात और महाराष्ट्र से बंगाली बोलने वाले मुस्लिम मज़दूरों के ख़िलाफ़ हिंसक नफ़रती अभियानों की भी ख़बरें आ रही हैं। कश्मीर के भीतर, जिन लोगों पर संदेह है या जिन पर आरोप लगे हैं, उनके पारिवारिक घरों को हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की सीधी अवहेलना करते हुए उड़ाया जा रहा है, और फिर से सामूहिक गिरफ़्तारियाँ शुरू हो चुकी हैं, जो सरकार हमले से पहले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में पूरी तरह नाकाम रही, वही अब इस्लामोफोबिक उन्माद को ‘बदले’ के तमाशों से हवा दे रही है।
इस बीच, पहलगाम हमले के पीड़ितों के परिवारों की आवाज़ें जो मोदी सरकार से जवाब और जवाबदेही मांग रही हैं, जो जानबूझकर दबाई जा रही हैं। सूरत की शीतल कलाथिया का ग़ुस्सा, जिन्होंने अपने बैंक कर्मचारी पति शैलेश कलाथिया को पहलगाम में खो दिया। उस वीआईपी केंद्रित सुरक्षा व्यवस्था पर है, जो आम टैक्स चुकाने वाले पर्यटकों को पूरी तरह असुरक्षित छोड़ देती है। उनका ग़ुस्सा हर उस भारतीय के दर्द को दर्शाता है, जिसने किसी अपने को सरकार की बेरुख़ी और लापरवाही के चलते खोया है। चाहे वो कोविड महामारी हो, महाकुंभ का भगदड़, या अब पहलगाम आतंकी हमला। जहाँ एक ओर आम पर्यटक सुरक्षा के नाम पर अपनी जान गँवा बैठे, वहीं झारखंड से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे जो विपक्षी नेताओं और यहाँ तक कि भारत के प्रधान न्यायाधीश पर गैर-ज़िम्मेदाराना बयान देने के लिए विख्यात हैं। उन्होंने पहलगाम हमले से कुछ दिन पहले ही कश्मीर के गुलमर्ग में भारी सुरक्षा इंतज़ामों के बीच अपनी 25वीं शादी की सालगिरह मनाई। वहीं दूसरी तरफ, लश्कर-ए-तैयबा की शाखा ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ जिसने पहले इस हमले की ज़िम्मेदारी ली थी, अब इससे इनकार कर रही है, जिससे पूरा मामला और ज़्यादा संदिग्ध और पेचीदा हो गया है।
भाजपा भले ही कश्मीर मुद्दे को ‘हल’ करने का दावा करती हो, लेकिन मोदी सरकार की कश्मीर नीति ने इस संकट को और गहरा ही किया है। नवंबर 2016 में नोटबंदी को कश्मीर में आतंकवाद का अचूक इलाज बताया गया, लेकिन पुलवामा ने इस दावे की पोल जल्द ही खोल दी। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा और राज्य का दर्जा छीन लेना एक और ‘मास्टरस्ट्रोक’ के तौर पर पेश किया गया। अब पहलगाम ने इस प्रचार की भी हवा निकाल दी है। सरकार ने अपने प्रचार अभियान के तहत लोगों को कश्मीर आने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन अब पहलगाम हमले के बाद वही सरकार कह रही है कि बैसरन घाटी में गए पर्यटकों के पास ज़रूरी पुलिस अनुमति नहीं थी।
असल समस्या ये है कि इस सरकार को आम लोगों की ज़िंदगियों और अधिकारों की कोई परवाह नहीं है और यही बात इसे हर समुदाय और हर क्षेत्र के लिए एक भयानक आपदा बनाती है। मणिपुर से लेकर कश्मीर तक, और महाराष्ट्र से लेकर छत्तीसगढ़ तक, संघ की सत्ता की साज़िशें पूरे देश को लहूलुहान और तबाह कर रही हैं, जबकि अडानी और अंबानी अपने अरबों की संपत्ति की गिनती कर रहे हैं और भाजपा व उसके सहयोगी जश्न मना रहे हैं। गणतंत्र के 75वें साल में पहलगाम भारत के लिए एक और जोरदार चेतावनी है।
यह वक्त है जब जनता को तानाशाही ताकतों के उन घृणित प्रयासों के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए, जो पहलगाम त्रासदी का इस्तेमाल नफरत फैलाने और बाँटने के लिए कर रही हैं। इस भयावह हमले को लेकर हर दिन नए सवाल उठ रहे हैं। इसलिए हमें सत्ता में बैठे लोगों से जवाबदेही जरूर मांगनी चाहिए और सच्चाई को किसी भी क़ीमत पर दफन नहीं होने देना है। हमारे नेता तेजस्वी यादव एवं लालू प्रसाद यादव का स्टेंड भी स्पष्ट है। भारत और पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसियों के बीच युद्ध का ख़तरा मंडरा रहा है, इसे हर हाल में टालना होगा। दोनों देशों की अमनपसंद ताकतों को आगे आकर तनाव कम करने और पूरे दक्षिण एशिया में मेलजोल, भाईचारे और क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।
उक्त बातें बैठक के दौरान पूर्व विधायक श्री यादव ने पत्रकारों को भी मुखातिब होते हुए कहा।
इस बैठक में पूर्व प्रमुख भोगेन्द्र यादव, झमेली महरा, राम अवतार यादव, बेचन मंडल, शशि कांत यादव, मुखिया नवीन कुमार यादव, प्रणव कुमार पप्पू, हजारी कामत, हरी यादव, जिला राजद उपाध्यक्ष विष्णु देव भंडारी, अमर बहादुर कामत, पंचायत समिति सदस्य दिलीप कुमार यादव, राजद प्रवक्ता बिनोद कुमार यादव सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
बैठक की अध्यक्षता प्रखंड राजद अध्यक्ष सह जिला परिषद सदस्य झमेली महरा ने किया, और मंच संचालन विष्णु देव भंडारी ने किया। उपस्थित नेताओं ने 3 मई और 8 मई के कार्यक्रम को सफल बनाने पर जोर दिया।