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दरभंगा :
महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने तीन शादियां कर रखी थी। जिनमे पहली पत्नी का नाम महारानी राज लक्ष्मी, दूसरी पत्नी कामेश्वरी प्रिया और तीसरी पत्नी कामसुंदरी देवी है। जिनका अभी दरभंगा के निजी अस्पताल मे इलाज चल रहा है। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने तीसरी पत्नी कामसुंदरी देवी के नाम महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन की स्थापना की। महाराजा कामेश्वर सिंह की तीनो पत्नियों से कोई संतान नहीं थे।
महाराजा की दूसरी पत्नी कामेश्वरी प्रिया का निधन 1942 मे हो गया था, जबकि महरानी राजलक्ष्मी का निधन 1976 मे हो गया था। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह 1929 से 1952 तक जमींदार थे। भारतीय राजघरानो मे दरभंगा महाराज का अपना खास स्थान हुआ करता था। दरभंगा राज घराना दानशीलता के कारण काफ़ी प्रसिद्ध थे। इस राजघराने का बिहार के मिथिला क्षेत्र मे लगभग 8380 किलोमीटर मे फ़ैला हुआ था। कामेश्वर सिंह का निधन 1962 मे हो गया था। दरभंगा राज की स्थापना 1556 ई० में महेश ठाकुर के द्वारा की गई थी। इसमें बिहार का पूरा मिथिला क्षेत्र शामिल था।
इसके अंतिम शासक महाराजा कामेश्वर सिंह रहे, जिनका निधन 1962 में हो गया था। वह दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद दरभंगा राज्य की अधिकतर संपत्तियों का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया था। इसके अलावा कुछ जमीन व किलों को दरभंगा राज परिवार के शासकों द्वारा सरकार को दान में भी दे दी गई थी। इसी क्रम में एक किले को दान देकर सन 1961 में मिथिला संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। महाराजा कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद उसका नाम कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय कर दिया गया।
बताया जाता है की 16 मार्च, 1949 में कामेश्वर सिंह के जीवित रहते ही कामेश्वर रिलीजियस ट्रस्ट का गठन हुआ था। नियमानुसार इस ट्रस्ट का प्रमुख राज दरभंगा का ही प्रमुख हो सकता था। इसलिए उनके निधन के बाद बड़ी रानी राजलक्ष्मी ट्रस्टी बनीं। उनके भी निधन के बाद से छोटी रानी कामसुंदरी इसकी ट्रस्टी हैं, जो अभी 95 साल की हैं। 2003 में उन्होंने अपनी पावर ऑफ एटॉर्नी उदयनाथ झा को दी, जो उनकी बड़ी बहन के बेटे हैं। कामेश्वर सिंह जो इस तरह के मामलों के अच्छे जानकार थे, उन्होंने लंदन के लॉएड्स बैंक को चिट्ठी लिखी थी कि वह उनकी 1958 की वसीयत को सुरक्षित रखा जाय।
महाराजा के वसीयत के मुताबिक संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा लोकहित के लिए रहेगा। पारिवारिक सेटलमेंट के तहत संपत्ति छोटी रानी और उनके भतीजों के बीच बांटी गई। अब एक-तिहाई के बदले एक-चौथाई संपत्ति लोकहित के लिए छोड़ी गई थी। बड़ी रानी का निधन 1976 में ही हो गया था। हालांकि बड़ी रानी की डायरी के आखिरी दिनों के पन्ने इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि इमरजेंसी के दौरान राज दरभंगा की संपत्ति का तेजी से सरकारीकरण हुआ। वह लिखती हैं 26 अगस्त 1975 को बिहार सरकार ने अपने मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र की अगुआई में दरभंगा राज का मुख्य कार्यालय ले लिया।
3 सितंबर, 1976 को जगन्नाथ मिश्र ने दरभंगा शहर में राज की 300 बीघा जमीन के लिए 70,000 रुपए के मुआवजे की पेशकश की, जिसे ट्रस्टियों ने स्वीकार कर लिया।” वे आरोप लगाती हैं कि ट्रस्टियों ने ऐसा करने के लिए सरकार से रिश्वत ली। वहां जो विश्वविद्यालय बना वह ललित नारायण मिश्र के नाम से बना। 10 अक्तूबर को वे राज के महल नरगौना पैलेस के सरकारी अधिग्रहण की सूचना भी देती हैं।आपको बता दें कि दरभंगा राज के आखिरी महाराजा कामेश्वर सिंह आजादी के बाद भारतीय संविधान निर्माण कमिटी के भी मेंबर थे।