- नवरात्र में मां दुर्गा का गज वाहन से आगमन नर वाहन से प्रस्थान
- पंचांग के अनुसार घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:09 से सुबह 08:06 बजे तक रहेगा
- इसके अलावा अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा
खबर दस्तक
मधुबनी :
शारदीय नवरात्रि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में नौ दिनों तक चलने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। इसमें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। यह अच्छाई पर बुराई की जीत का उत्सव है, और प्रकृति में शीत ऋतु के आगमन का सूचक है। इस दौरान भक्त देवी की पूजा कर सुख, समृद्धि और सकारात्मकता प्राप्त करते हैं। शारदीय नवरात्र की तैयारी जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों मे हर्षोल्लास के साथ की जा रही है। पितृ पक्ष की समाप्ति 21 सितंबर को है, इसके बाद 22 सितंबर सोमवार को शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाएगा। इस बार माता का आगमन गज वाहन एवं प्रस्थान नर वाहन से होगा।
मान्यता है कि महालया के दिन पितरगण चंद्रलोक की ओर प्रस्थान करते है, और नवरात्र मे भगवती पृथ्वीलोक मे भ्रमण के लिए आती है। नवरात्र मे भगवती दुर्गा के नौ स्वरूपों, दश महाविद्या और चौसठ योगिनी की पूजा की जाती है। इस साल नौ नहीं बल्कि दस दिन की होगी शारदीय नवरात्र। प्रकृति की कारक स्वरूपा त्रयात्मक शक्ति और फिर उसके त्रिगुणात्मक प्रभाव से उत्पन्न प्राकृतिक शक्ति के नौ स्वरूपों को जगतजननी के श्रद्धात्मक भावों में ही अंगीकार किया है। फिर दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रकृति के त्रिगुणात्मक शक्ति को देखा जा सकता है। ये हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। ये नौ दुर्गा काल और समय के आयाम में नहीं, उससे परे हैं। ये दिव्य शक्तियां काल और समय के परे हैं। इनका जो विकार निकलता है, वही काल और समय के आयाम में प्रवेश करता है और ऊर्जा का रूप ले लेता है। इस प्रकार नौ दूर्गा, उनके नौ प्रकार और उनके प्रकार की ही काल और समय में नौ ऊर्जाएं हैं। ऊर्जाएं भी नौ ही हैं, क्योंकि यह उनका ही विकार है। यह तो भौतिक ऊर्जाओं की बात हुई, अब इन भौतिक ऊर्जाओं के आधार पर सृष्टि की जो आकृति बनती है, वह भी नौ प्रकार की ही है। पहला प्लाज्मा, दूसरा क्वार्क, तीसरा एंटीक्वार्क, चौथा पार्टिकल, पांचवां एंटी पार्टिकल, छठा एटम, सातवां मालुक्यूल्स, आठवां है मार्स और उनसे नौवें प्रकार में नाना प्रकार के ग्रह-नक्षत्र। यदि हम जैविक सृष्टि की बात करें, तो वहां भी नौ प्रकार ही हैं। छह प्रकार के उद्भिज हैं, इसके तहत औषधि, वनस्पति, लता, त्वक्सार, विरुद् और द्रमुक, सातवां स्वेदज, आठवां अंडज और नौवां जरायुज इससे मानव पैदा होते हैं। ये नौ प्रकार की सृष्टि होती है।
पृथ्वी का स्वरूप भी नौ प्रकार का ही है। पहले यह जल रूप में, फिर फेन बना, फिर कीचड़ बना, सूखने पर शुष्क बना, फिर पयुष यानी ऊसर बनी फिर सिक्ता यानी रेत बनी, फिर शर्करा यानी कंकड़ बनी, फिर अश्मा यानी पत्थर बनी और फिर लौह आदि धातु बने फिर नौवें स्तर पर वनस्पति बनी। इसी प्रकार स्त्री की अवस्थाएं, उनके स्वभाव, नौ गुण, सभी नौ ही हैं।
नवरात्र के वातावरण से तमस का होता है अंत :
नवरात्र में नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है। शारदीय नवरात्रि से मन में उमंग और उल्लास की वृद्धि होती है। दुनिया में सारी शक्ति नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है, इसलिए नवरात्र में देवी की उपासना की जाती है। देवी शक्ति का एक स्वरूप कहलाती है, इसलिए इसे शक्ति नवरात्र भी कहा जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में देवी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है। हर स्वरूप से विशेष तरह का आशीर्वाद और वरदान प्राप्त होता है। इसके साथ ही ग्रहों की समस्याओं का समापन भी होता है। स्टेशन चौक स्थित हनुमान प्रेम मंदिर के पुजारी पंकज झा शास्त्री ने कहा कि शारदीय नवरात्रि 21 सितंबर सोमवार से आरंभ होगा, जिसका समापन 2 अक्टूबर गुरुवार को होगा। शास्त्रों मे दिन के अनुसार माता के आगमन और प्रस्थान का वाहन निर्धारित होता है। इस बार मां दुर्गा सोमवार को गज वाहन से सवार होकर पृथ्वी लोक मे आ रही है। जबकि गमन गुरुवार को नर वाहन से कर रही है। ज्योतिषीय दृष्टि से देखे तो माता का आगमन सुख, समृद्धि, सौभाग्यता, जलाधिकयता का संकेत है। जबकि गमन बाहन संप्रदायिक दंगा, उग्र आंदोलन, युद्ध जैसे हालात और रक्तपात का संकेत दे रहा है।
ऐसे मे हम सभी को निष्ठा पूर्वक माता को शांति बनाये रखने हेतु प्रार्थना करना चाहिए।
नवरात्र में आध्यात्मिक व मानसिक शक्ति का होता है संचय :
नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। कुछ साधकों द्वारा नवरात्र में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। मनीषियों द्वारा नवरात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझाने का प्रयत्न किया गया है। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है।
पंडित पंकज झा शास्त्री ने कहा कि ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान लिया था। दिन में आवाज दी जाए, तो वह दूर तक नहीं जाएगी किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में सुनना मुश्किल होता है, जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।
वैज्ञानिक सिद्धांत यह है, कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है। इसलिए ऋषि-मुनियों द्वारा रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा अधिक बताया गया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।
नवरात्र को नौ रातों का समूह कहा जाता है। रूपक द्वारा हमारे शरीर को 9 मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर निवास करने वाली जीवन शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इस मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारु रूप से क्रियाशील रखने के लिए 9 द्वारों की शुद्धि का पर्व 9 दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए 9 दिन 9 दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं। शरीर को सुचारु रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं, किंतु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर 6 माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार द्वारा व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ-सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता क्रमश: मन शुद्ध होता है। स्वच्छ मन-मंदिर में ही ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है। कलश स्थापन के लिए शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर रविवार प्रातः 06:16 से दिन के 10:35 तक उत्तम है। वैसे समय अभाव मे इस दिन कलश स्थापन कभी भी कर सकते है। लेकिन यह समय सिद्धि का होता है, और इसमें राहु काल भी कमजोर माना गया है। पंचांग के अनुसार घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:09 से सुबह 08:06 बजे तक रहेगा। इसके अलावा अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा।
शारदीय नवरात्रि तिथि :
22 सितंबर 2025 प्रतिपदा मां शैलपुत्री पूजा
23 सितंबर 2025 द्वितीया मां ब्रह्मचारिणी पूजा
24 सितंबर 2025 तृतीया मां चंद्रघंटा पूजा
25 सितंबर 2025 तृतीया – चतुर्थी
26 सितंबर 2025 चतुर्थी मां कूष्मांडा पूजा
27 सितंबर 2025 पंचमी मां स्कंदमाता पूजा
28 सितंबर 2025 षष्ठी मां कात्यायनी पूजा
29 सितंबर 2025 सप्तमी मां कालरात्रि पूजा
30 सितंबर 2025 महाअष्टमी मां महागौरी पूजा
1 अक्टूबर 2025 महानवमी मां सिद्धिदात्री पूजा
2 अक्टूबर 2025 व्रत पारण, दुर्गा विसर्जन और दशहरा.