खबर दस्तक
आरा :
परमपूज्य त्रिकालदर्शी परमसिद्ध विदेह संत श्री देवराहा शिवनाथ दास जी महाराज के सान्निध्य में रविवार को बिहिया चौरास्ता अंतर्गत पूर्व टोला दोघरा में राधा अष्टमी के पावन अवसर पर संकीर्तन का आयोजन किया गया। संकीर्तन के पूर्व श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए संत श्री देवराहा शिवनाथ दास जी महाराज ने कहा कि जो ईश्वर को देखता है, वह संसार को नहीं देखता है। जैसे गुड़ का स्वाद गुड़ खाने वाले को ही पता होता है। परंतु जो गुड़ खाया ही नहीं है, उसे गुड़ के रसास्वादन का क्या पता कि गुड़ मीठा है या तीखा।
संत श्री ने आगे कहा कि ईश्वर अनुभवगम्य है। जो ईश्वर का एक बार अनुभव कर लेता है, उसे अन्य अनुभव की आवश्यकता ही नहीं है। ईश्वर का अनुभव तो भाव और प्रेम से होता है। शबरी प्रति दिन भगवान की राह देखती थी, जिससे शबरी और राम जी का मिलन हो और कहती थी मेरे राम आयेंगे। शबरी ने अपना जीवन श्रीराम के दर्शन की इच्छा में बिताया था। एक दिन ऐसा आया जब सीता की खोज में निकले राम और लक्ष्मण शबरी की कुटिया में पधारे और शबरी ने फूलों से उनका स्वागत किया और शबरी की राम जी से मुलाकात हो गई। शबरी बहुत गरीब थी।
इसीलिए उनके पास दोनों भाईयो को ‘बेर’ खिलाने के अलावा कोई उपाय नहीं था। शबरी ने सारे बेर चखा, जो बैर मीठे थे वही राम को खिलाया, क्योकि राम को कोई बेर खट्टे न लगे। इसीलिए शबरी ने सारे बेर चखे और बाद में राम को खिलाया। शबरी के जूठे बेर श्री लक्ष्मण जी को अच्छे नहीं लगें। इसी लिए उन्होंने किसी को दिखाए बीना सारे बेर वैसे के वैसे अपने पास रख लिए। शबरी के प्रेम से भगवान श्री राम बहुत ही प्रसन हुए और अंततः उन्हें मोक्ष दिया। कहने का अभिप्राय है कि भगवान भाव और प्रेम के भूखे हैं। ईश्वरीय जगत में वस्तु का कोई मोल नहीं। मोल है तो सिर्फ प्रेम और प्रेममय, प्रेमजनित- पोषित भाव का।
वहीं इस दौरान हजारों श्रद्धालु भक्त मौजूद थे।