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सीतामढ़ी :
सीतामढ़ी जिले में बागमती नदी एक बार फिर अपने रौद्र रूप में है। मानसून के दौरान नेपाल के जलग्रहण क्षेत्रों में लगातार हो रही बारिश से बागमती का जलस्तर तेजी से बढ़ा है, जिसके साथ नदी का कटाव भी विकराल रूप ले चुका है। इस प्रचंड कटाव की चपेट में आए सुप्पी प्रखंड के जमला परसा गांव में लोग मजबूरी में अपने ही घरों को तोड़ने पर विवश हो गए हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि नदी का कटाव इतनी तेजी से हो रहा है कि किसी भी पल उनका घर जमीन सहित नदी में समा सकता है। इसी भय से कई परिवार जेसीबी और बुलडोज़र मंगाकर अपने पक्के मकानों को खुद ध्वस्त कर रहे हैं, ताकि ईंट-पत्थर और अन्य सामग्री को सुरक्षित रखा जा सके। घर-आंगन से सामान निकालकर ऊंचे और सुरक्षित स्थानों की ओर ले जाने की होड़ मच गई है।
जमला परसा गांव के लोग वर्षों से इस प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहे हैं। बागमती नदी का यह तांडव हर मानसून में यहां तबाही मचाता है। अब तक कटाव की वजह से सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन नदी में विलीन हो चुकी है और असंख्य परिवारों को अपना बसेरा छोड़ पलायन करना पड़ा है। ग्रामीणों का कहना है कि बांध के भीतर बसे इस गांव में बागमती का पानी हर साल बस्ती के करीब पहुंच जाता है और कटाव की रफ्तार थमने का नाम नहीं लेती।
प्रशासन की ओर से अब तक केवल अस्थायी निरोधात्मक कार्य ही किए गए हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। कटाव रोकने के लिए लगाए गए बालू भरे बोरे और अस्थायी तटबंध पानी के दबाव के आगे टिक नहीं पाते।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले बागमती से थोड़ी दूरी पर बस्ती थी, लेकिन बीते एक दशक में नदी लगातार करीब आती गई। अब हालात ऐसे हैं कि पक्के मकानों के दरवाजे से कुछ ही गज की दूरी पर कटाव हो रहा है। ग्रामीणों ने सरकार से शीघ्र पुनर्वास की मांग की है, ताकि हर साल होने वाली इस त्रासदी से उन्हें छुटकारा मिल सके।
फिलहाल जमला परसा में माहौल दहशत और अफरा-तफरी का है। बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी अपना-अपना सामान समेटने में जुटे हैं। घर टूटने की आवाज़ के बीच बागमती की गरज और तेज बहाव लोगों के दिलों में दहशत भर रहा है। गांव में हर तरफ यही चर्चा है—”नदी कब किसका घर ले जाएगी, कोई नहीं जानता।”