- अमृता यूनिवर्सिटी बेंगळूरू के गाइड व छात्रों की टीम में चित्रकला व मखाना की खेती के बारे जानकारी लिया
खबर दस्तक
मधुबनी :
मधुबनी जिला का सुप्रसिद्ध मिथिला चित्रकला एवं मखाना की खेती की चर्चा देश ही नहीं विदेश तक पंहुच चुका है। राज्य के बाहर के विश्वविद्यालयों से शोधपरक छात्र एवं विदेशी पर्यटक यहां शोध करने पंहुचनें लगे हैं। अमृता यूनिवर्सिटी बेंगलुरु की दो टीम ने लिव-इन-लाइव कार्यक्रम के तहत इंजीनियरिंग और मानवीकी के शोधार्थी छात्रों ने मधुबनी ज़िले के जितवारपुर और सतलखा गाँवों में एक सप्ताह तक रहकर यहां की जीवनशैली, पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय नवाचारों को नज़दीक से अध्यन किया। यह शोध अध्ययन श्रीमाता अमृतानंदमयी देवी की प्रेरणा से संचालित होता है। इसका मार्गदर्शन प्रोवोस्ट डॉ. मनीषा वी. रमेश कर रही थीं।
जितवारपुर में टीम का नेतृत्व सहायक प्राध्यापक, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन विग्नेश वी ने किया। टीम में रोहित नायर, अद्विक, रूपा, पवित्रा और श्रीजिष्णु शामिल थे। जितवारपुर में टीम का नेतृत्वकर्ता विग्नेश वी ने बताया कि जितवारपुर गांव में मधुबनी पेंटिंग को केवल एक कला के रूप में नहीं, बल्कि वहां की सांस्कृतिक पहचान और रोज़मर्रा के जीवन का अभिन्न हिस्सा पाया। महिलाओं द्वारा घरों में पारंपरिक रूप से की जा रही चित्रकला ने टीम को गहराई से प्रभावित किया है। यहाँ चार पद्मश्री विजेता और अनेक राज्य व राष्ट्रीय स्तर के कलाकार रहते हैं। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि यदि कला से जुड़े लोगों को तकनीकी माध्यमों और वैकल्पिक बाज़ारों तक पहुँच मिल सके, तो यह उनके काम को एक नई ऊँचाई दे सकता है।
सतलखा गाँव में छात्रों का नेतृत्व कर रही सहायक प्राध्यापक डॉ. माधवी प्रसाद अमृता दर्शनम् विभाग की टीम ने ग्रामीणों के साथ संवाद स्थापित किया। टीम में हिमा वर्षिनी, कीर्तिनिधि, श्रीप्रिया, श्रीवल्लभा, प्रणव नायर और साई कृष्णा शामिल थे। उन्होंने कहा कि गाँव की पारंपरिक मखाना खेती और जल स्रोतों से जुड़ी बातों ने टीम का ध्यान खींचा है। उन्होंने कहा कि सतलखा के निवासियों ने कहा कि ग्रामीणों को जल प्रबंधन के नई तकनीकों के कुछ पहलुओं में जानकारी बढ़े, तो खेती व स्वरोज़गार के और भी अवसर उभर सकते हैं।
गांव की लड़कियों द्वारा शिक्षा और मधुबनी कला के ज़रिए आत्मनिर्भरता की दिशा में किए जा रहे प्रयास अत्यंत प्रेरणादायक रहे। टीम को लगा कि यदि कुछ सुविधाएं और जानकारी साझा हो, तो ग्रामीण समुदाय अपने अनुभवों और संसाधनों के बल पर और भी सशक्त हो सकते हैं।
दोनों टीमों का मानना है कि जितवारपुर और सतलखा जैसे गाँवों में संसाधनों की गहराई, परंपरा की समृद्धि और नवाचार की भावना मौजूद है। छात्रों के लिए यह यात्रा केवल सीखने का अवसर नहीं था बल्कि सहयोग और समझ की शुरुआत भी थी। वे भविष्य में भी इस संबंध को बनाए रखने और स्थानीय स्तर पर सहभागी बनकर काम करने के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा कि यहां दोनों गॉवों के अध्ययन से यह कहा जा सकता है कि यहां के मिथिला चित्रकला के कलाकारों एवं मखाना खेती से जुड़े किसानों को यदि बढ़िया प्रशिक्षण की सुविधा मिले, तो वे काफी उन्नति कर सकते हैं।